ज़िंदगी
की इस राह में,
थामा जो तुमने यह हाथ!
एक वादा-सा लगा,
की ना छूटे ये साथ!
इस नये अनूठे बंधन से,
कई नये रिश्ते मिले!
कुछ दिल के करीब हुए,
तो कुछ सिर-आँखों-पर रखे!
सँजोकर
रखना चाहा था,
इसलिय
खुद को भी बदला था!
पर पता ही ना चला तब,
पीछे छूटने लगे अपने कब?
ज़िंदगी
भर जो साथ रहे,
पर ना जाने कब उनमे द्वेष बड़े!
ना रहती थी जो दिल में बातें,
आज वही बड़े सवाल बने!
जहाँ गूँजती थी कभी किलकरी,
आज वहाँ अनचाही खामोशी है!
जहाँ ना थी कभी कोई दीवारें,
आज अजब यह हिचक सी है!
सबको साथ लेकर चलना चाहा था मैने,
पर ना जाने कब यह चूक हुई!
नये रिश्तों को संजोना था मैने,
पर कब अपनो से मैं दूर हुई?
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