Wednesday 9 October 2013

मेरे अधूरे सपने!


जब बचपन था, तो जवानी ड्रीम था!
जब जवान हुए, तो बचपन डिज़ाइर है!

जब घर में रहते थे, आज़ादी अछी लगती थी.
आज अकेले हैं तो हर पल घर के दिन याद आते हैं!

कभी होटेल में जाना, पिज़्ज़ा - बर्गर खाना पसंद था.
आज घर पर आना और मां के हाथ के खाने में ही जन्नत है!
 
जिनसे झगड़ते थे स्कूल में उन दोस्तो को इंटरनेट में तलाशते हैं.
आज कल तो खुश रहने के तरीके भी हम  गूगल में सर्च मारते हैं!

फ़ेसबुक से डेटिंग और फ्लिपकार्ट - -बे से शॉपिंग करते हैं.
घर पर भी बात अब स्काइप/ जी-टॉक से करते हैं!

लाइफ को लॅपटॉप और मोबाइल में समैट दिया है.
हम समझते हैं हमने खुद को अपडेट किया है!

इस नई दुनिया में हमने क्या गुमा दिया.
कब क्या बदला, हमे कुछ पता भी ना चला!

पैसा मिला नाम मिला, कुछ है हम यह विश्वास मिला.
पर क्या छोड़ा, क्या त्यागा हमने, इसका ना हिसाब मिला!

खुशी किसमे होती है, यह पता अब चला है.
बचपन क्या था इसका एहसास अब हुआ है.

काश बदल सकते ज़िंदगी के कुछ साल पिछले.
काश जी सकते ज़िंदगी एक बार फिर से,
काश मिल सकता बचपन मुझको एक बार फिरसे!

My Little Girl!

Tiny hands and tiny feet, Glittery eyes and chubby cheeks! I hold you smile, though teary eyes,  With loads of love and Joy inside! ...